लोग आते है हम उनके दुःख का हिस्सा ना होते हुये नियम के अनुसार उन्हें कंपनी से मिलने वाले डेथ क्लेम के बारे में सभी कुछ बताते है और भरसक इतना प्रयास करते है की उन्हें अपने उस इन्सान के जाने के बाद का धन जो की उनके फ्यूचर के लिये छोड़ा गया था जल्दी मिल जाये ।सारे डाक्यूमेंट्स हमारे संस्था में जमा होने के बाद से उन्हें क्लेम की रासी मिलने तक हम उनके साथ भी उनके दुःख के साथ जुरे रहते है ।
ना जाने कितने क्लेम प्रोसेस करने के बाद भिलाई के एक इन्सान जो की अपने जवान बेटे की मौत के बाद मेरे संपर्क में आये और करीब दो से तीन महीने तक मुझसे जुड़े रहे । उस पिता की उम्र करीब 55 वर्ष होंगी और उस बेटे की उम्र जिसकी मौत हुई थी 15-16 वर्ष । शायद वह करीब हमारे ऑफिस में 10 बार आ चुके होंगे । आँख में चस्मा और हाथ कांपते हुये उसकी हिम्मत को, मैं गौर कर रहा था उनके चहरे पर एक भी सिकन नहीं था हालाँकि उसके बेटे की मौत एक दुर्घटना थी तो उन्हें पुलिश थाने भी जाने की जरुरत परी जिसमे उसकी हिम्मत भी जबाब दे चुकी थी। उनकी सहायत के लिये मुझे भी अंतिम बार अपने रिपोर्ट भेजने के लिये भिलाई के उसी पुलिश थाने में जाना पड़ा जहा उनके बेटे का पोस्टमार्टम हुआ था ।
उसने मुझे बताया की थाने वाले उसे सही से मदद नहीं कर रहे है । मैं वहा गया और जितनी जानकारी मुझे लेनी थी पुलिश थाने वाले ने सही से जानकारी दी । और मुझे वहां जा कर पता चला कि किस तरह आम लोग और गरीब लोग इन सरकारी नौकरपेशो से परेशांन रहते है । मेरा काम हो चूका था और मेरे रिपोर्ट भेजने के बाद कुछ दिनों के बाद डेथ क्लेम का चेक आ गया और मैंने उस पिता को ऑफिस बुला कर वह चेक जैसे ही उसके हाथ में दिया पहली बार उस पिता को मैंने अपने सामने रोते हुए देखा । उसके आँख में आंसू देख कर उसके दुःख को तो मै महसूस कर रहा था पर मेरी कोई भी शब्द उसके दुःख को कम नहीं कर सकते थे । पर मेरे जुबान से एक ही शब्द निकले जो की हमेशा निकलते है "इन्सान के जीवन में यही एक पल होता है जिसमे उसका या उसके अपनों का कोई वश नहीं होता है और यह जीवन की सबसे करवी और सच्ची सच्चाई है ।"
उस पिता ने रोते हुए अपने बेटे की याद में उन पैसो से एक मंदिर बनाने की बात कही और मुझे धन्यवाद कह कर चला गया ।
शायद ही मैं दुबारा उस इन्सान से मिल पाऊंगा । लेकिन जीवन की सबसे बरी सच्चाई से उसने मुझे एक बार फिर से आमने सामने खरा कर दिया ।
राजेश !!!!!!
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